एक थी बुढ़िया,
बेहद बूढ़ी पूरे नब्बे साल की। एक तो बेचारी को ठीक से दिखाई नहीं पड़ता था ऊपर से
उसकी मुर्गियाँ चराने वाली लड़की नौकरी छोड़ कर भाग गयी।
बेचारी बुढ़िया! सुबह मुर्गियों को चराने के लिये
खोलती तो वे पंख फड़फड़ाती हुई सारी की सारी बुढिया के घर की चारदीवारी फाँद कर
अड़ोस पड़ोस के घरों में भाग जातीं और 'कों कों कुड़कुड़' करती हुई सारे मोहल्ले
में हल्ला मचाती हुई घूमतीं। कभी वे पड़ोसियों की सब्जियाँ खा जातीं तो कभी पड़ोसी
काट कर उन्हीं की सब्जी बना डालते। दोनों ही हालतों में नुकसान बेचारी बुढ़िया का
होता। जिसकी सब्जी बरबाद होती वह बुढ़िया को भला बुरा कहता और जिसके घर में मुर्गी
पकती उससे बुढ़िया की हमेशा की दुश्मनी हो जाती।
हार कर बुढ़िया ने सोचा कि बिना नौकर के
मुर्गियाँ पालना उसकी जैसी कमज़ोर बुढ़िया के बस की बात नहीं। भला वो कहाँ तक डंडा
लेकर एक एक मुर्गी हाँकती फिरे? ज़रा सा काम करने में ही तो उसका दम फूल जाता था।
और बुढ़िया निकल पड़ी लाठी टेकती नौकर की तलाश में।
पहले तो उसने अपनी पुरानी मुर्गियाँ चराने वाली
लड़की को ढूँढा। लेकिन उसका कहीं पता नहीं लगा। यहाँ तक कि उसके माँ बाप को भी
नहीं मालूम था कि लड़की आखिर गयी तो गयी कहाँ? "नालायक और दुष्ट लड़की! कहीं
ऐसे भी भागा जाता है? न अता न पता सबको परेशान कर के रख दिया।" बुढ़िया
बड़बड़ायी और आगे बढ़ गयी।
थोड़ी दूर पर एक भालू ने बुढ़िया को बड़बड़ाते
हुए सुना तो वह घूम कर सड़क पर आ गया और बुढ़िया को रोक कर बोला, " गु र्र र
, बुढ़िया नानी नमस्कार! आज सुबह सुबह कहाँ जा रही हो? सुना है तुम्हारी मुर्गियाँ
चराने वाली लड़की नौकरी छोड़ कर भाग गयी है। न हो तो मुझे ही नौकर रख लो। खूब
देखभाल करूँगा तुम्हारी मुर्गियों की।"
"अरे हट्टो, तुम भी क्या बात करते हो?
बुढ़िया ने खिसिया कर उत्तर दिया, " एक तो निरे काले मोटे बदसूरत हो
मुर्गियाँ तो तुम्हारी सूरत देखते ही भाग खड़ी होंगी। फिर तुम्हारी बेसुरी आवाज़
उनके कानों में पड़ी तो वे मुड़कर दड़बे की ओर आएँगी भी नहीं। एक तो मुर्गियों के
कारण मुहल्ले भर से मेरी दुश्मनी हो गयी है, दूसरा तुम्हारे जैसा जंगली जानवर और
पाल लूँ तो मेरा जीना भी मुश्किल हो जाए। छोड़ो मेरा रास्ता मैं खुद ही ढूँढ लूँगी
अपने काम की नौकरानी।"
बुढ़िया आगे बढ़ी तो थोड़ी ही दूर पर एक सियार
मिला और बोला, "हुआँ हुआँ राम राम बुढ़िया नानी किसे खोज रही हो? बुढ़िया
खिसिया कर बोली, अरे खोज रहीं हूँ एक भली सी नौकरानी जो मेरी मुर्गियों की देखभाल
कर सके। देखो भला मेरी पुरानी नौकरानी इतनी दुष्ट छोरी निकली कि बिना बताए कहीं
भाग गयी अब मैं मुर्गियों की देखभाल कैसे करूँ? कोई कायदे की लड़की बताओ जो सौ तक
गिनती गिन सके ताकि मेरी सौ मुर्गियों को गिन कर दड़बे में बन्द कर सकें।"
यह सुन कर सियार बोला, "हुआँ हुआँ, बुढ़िया
नानी ये कौन सी बड़ी बात है? चलो अभी मैं तुम्हें एक लड़की से मिलवाता हूँ। मेरे
पड़ोस में ही रहती है। रोज़ जंगल के स्कूल में पढ़ने जाती है इस लिये सौ तक गिनती
उसे जरूर आती होगी। अकल भी उसकी खूब अच्छी है। शेर की मौसी है वो, आओ तुम्हें
मिलवा ही दूँ उससे।
बुढ़िया लड़की की तारीफ सुन कर बड़ी खुश होकर
बोली, "जुग जुग जियो बेटा, जल्दी बुलाओ उसे कामकाज समझा दूँ। अब मेरा सारा
झंझट दूर हो जाएगा। लड़की मुर्गियों की देखभाल करेगी और मैं आराम से बैठकर मक्खन
बिलोया करूँगी।"
सियार भाग कर गया और अपने पड़ोस में रहने वाली
चालाक पूसी बिल्ली को साथ लेकर लौटा। पूसी बिल्ली बुढ़िया को देखते ही बोली,
"म्याऊँ, बुढ़िया नानी नमस्ते। मैं कैसी रहूँगी तुम्हारी नौकरानी के काम के
लिये?" नौकरानी के लिये लड़की जगह बिल्ली को देखकर बुढ़िया चौंक गयी। बिगड़
कर बोली, "हे भगवान कहीं जानवर भी घरों में नौकर हुआ करते हैं? तुम्हें तो
अपना काम भी सलीके से करना नहीं आता होगा। तुम मेरा काम क्या करोगी?"
लेकिन पूसी बिल्ली बड़ी चालाक थी। आवाज को मीठी
बना कर मुस्कुरा कर बोली, "अरे बुढ़िया नानी तुम तो बेकार ही परेशान होती हो।
कोई खाना पकाने का काम तो है नहीं जो मैं न कर सकँू। आखिर मुर्गियों की ही देखभाल
करनी है न? वो तो मैं खूब अच्छी तरह कर लेती हूँ। मेरी माँ ने तो खुद ही मुर्गियाँ
पाल रखी हैं। पूरी सौ हैं। गिनकर मैं ही चराती हूँ और मैं ही गिनकर बन्द करती हूँ।
विश्वास न हो तो मेरे घर चलकर देख लो।"
एक तो पूसी बिल्ली बड़ी अच्छी तरह बात कर रही थी
और दूसरे बुढ़िया काफी थक भी गयी थी इसलिये उसने ज्यादा बहस नहीं की और पूसी
बिल्ली को नौकरी पर रख लिया।
पूसी बिल्ली ने पहले दिन मुर्गियों को दड़बे में
से निकाला और खूब भाग दौड़ कर पड़ोस में जाने से रोका। बुढ़िया पूसी बिल्ली की इस
भाग-दौड़ से संतुष्ट होकर घर के भीतर आराम करने चली गयी। कई दिनों से दौड़ते भागते
बेचारी काफी थक गयी थी तो उसे नींद भी आ गयी।
इधर पूसी बिल्ली ने मौका देखकर पहले ही दिन छे
मुर्गियों को मारा और चट कर गयी। बुढ़िया जब शाम को जागी तो उसे पूसी की इस हरकत
का कुछ भी पता न लगा। एक तो उसे ठीक से दिखाई नहीं देता था और उसे सौ तक गिनती भी
नहीं आती थी। फिर भला वह इतनी चालाक पूसी बिल्ली की शरारत कैसे जान पाती?
अपनी मीठी मीठी बातोंसे बुढ़िया को खुश रखती और
आराम से मुर्गियाँ चट करती जाती। पड़ोसियों से अब बुढ़िया की लड़ाई नहीं होती थी
क्योंकि मुर्गियाँ अब उनके आहाते में घुस कर शोरगुल नहीं करती थीं। बुढ़िया को
पूसी बिल्ली पर इतना विश्वास हो गया कि उसने मुर्गियों के दड़बे की तरफ जाना छोड़
दिया।
धीरे धीरे एक दिन ऐसा आया जब दड़बे में बीस
पच्चीस मुर्गियाँ ही बचीं। उसी समय बुढ़िया भी टहलती हुई उधर ही आ निकली। इतनी क़म
मुर्गियाँ देखकर उसने पूसी बिल्ली से पूछा, "क्यों री पूसी, बाकी मुर्गियों
को तूने चरने के लिये कहाँ भेज दिया?" पूसी बिल्ली ने झट से बात बनाई, "
अरे और कहाँ भेजँूगी बुढ़िया नानी। सब पहाड़ के ऊपर चली गयी हैं। मैंने बहुत
बुलाया लेकिन वे इतनी शरारती हैं कि वापस आती ही नहीं।"
"ओफ् ओफ् ! ये शरारती मुर्गियाँ।"
बुढ़िया का बड़बड़ाना फिर शुरू हो गया, "अभी जाकर देखती हूँ कि ये इतनी ढीठ
कैसे हो गयी हैं? पहाड़ के ऊपर खुले में घूम रही हैं। कहीं कोई शेर या भेड़िया आ
ले गया तो बस!"
ऊपर पहुँच कर बुढ़िया को मुर्गियाँ तो नहीं
मिलीं। मिलीं सिर्फ उनकी हडि्डयाँ और पंखों का ढ़ेर! बुढ़िया को समझते देर न लगी
कि यह सारी करतूत पूसी बिल्ली की है। वो तेजी से नीचे घर की ओर लौटी।
इधर पूसी बिल्ली ने सोचा कि बुढ़िया तो पहाड़ पर
गयी अब वहाँ सिर पकड़ कर रोएगी जल्दी आएगी नहीं। तब तक क्यों न मैं बची-बचाई
मुर्गियाँ भी चट कर लूँ? यह सोच कर उसने बाकी मुर्गियों को भी मार डाला। अभी वह
बैठी उन्हें खा ही रही थी कि बुढ़िया वापस लौट आई।
पूसी बिल्ली को मुर्गियाँ खाते देखकर वह गुस्से
से आग बबूला हो गयी और उसने पास पड़ी कोयलों की टोकरी उठा कर पूसी के सिर पर दे
मारी। पूसी बिल्ली को चोट तो लगी ही, उसका चमकीला सफेद रंग भी काला हो गया। अपनी
बदसूरती को देखकर वह रोने लगी।
आज भी लोग इस घटना को नही भूले हैं और रोती हुई
काली बिल्ली को डंडा लेकर भगाते हैं। चालाकी का उपयोग बुरे कामों में करने वालों
को पूसी बिल्ली जैसा फल भोगना पड़ता है।